ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
॥ जपु ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥
है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥
सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥
हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥
हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥
हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥
गावै को ताणु होवै किसै ताणु ॥
गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विदिआ विखमु वीचारु ॥
गावै को साजि करे तनु खेह ॥
गावै को जीअ लै फिरि देह ॥
गावै को जापै दिसै दूरि ॥
गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥
कथना कथी न आवै तोटि ॥
कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥
देदा दे लैदे थकि पाहि ॥
जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥
हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥
नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥
साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥
फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥
मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥
अम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥
नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥
थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ ॥
जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥
नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥
गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥
दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥
गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥
जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥
सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥
तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥
मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥
सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥
नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥
चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ ॥
जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥
कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥
नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥
तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥
सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥
सुणिऐ धरति धवल आकास ॥
सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥
सुणिऐ पोहि न सकै कालु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥
सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥
सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥
सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥
सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥
सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥
सुणिऐ अठसठि का इसनानु ॥
सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥
सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥
सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥
सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥
सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥
सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥
मंने की गति कही न जाइ ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
कागदि कलम न लिखणहारु ॥
मंने का बहि करनि वीचारु ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥
मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥
मंनै सगल भवण की सुधि ॥
मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥
मंनै जम कै साथि न जाइ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥
मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥
मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥
मंनै मगु न चलै पंथु ॥
मंनै धरम सेती सनबंधु ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥
मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥
मंनै परवारै साधारु ॥
मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥
मंनै नानक भवहि न भिख ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥
पंच परवाण पंच परधानु ॥
पंचे पावहि दरगहि मानु ॥
पंचे सोहहि दरि राजानु ॥
पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥
जे को कहै करै वीचारु ॥
करते कै करणै नाही सुमारु ॥
धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥
संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥
जे को बुझै होवै सचिआरु ॥
धवलै उपरि केता भारु ॥
धरती होरु परै होरु होरु ॥
तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥
जीअ जाति रंगा के नाव ॥
सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥
लेखा लिखिआ केता होइ ॥
केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥
केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥
कीता पसाउ एको कवाउ ॥
तिस ते होए लख दरीआउ ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥
असंख जप असंख भाउ ॥
असंख पूजा असंख तप ताउ ॥
असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥
असंख जोग मनि रहहि उदास ॥
असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥
असंख सती असंख दातार ॥
असंख सूर मुह भख सार ॥
असंख मोनि लिव लाइ तार ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१७॥
असंख मूरख अंध घोर ॥
असंख चोर हरामखोर ॥
असंख अमर करि जाहि जोर ॥
असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥
असंख पापी पापु करि जाहि ॥
असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥
असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥
असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥
नानकु नीचु कहै वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥
असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥
असंख कहहि सिरि भारु होइ ॥
अखरी नामु अखरी सालाह ॥
अखरी गिआनु गीत गुण गाह ॥
अखरी लिखणु बोलणु बाणि ॥
अखरा सिरि संजोगु वखाणि ॥
जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि ॥
जिव फुरमाए तिव तिव पाहि ॥
जेता कीता तेता नाउ ॥
विणु नावै नाही को थाउ ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१९॥
भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥
पाणी धोतै उतरसु खेह ॥
मूत पलीती कपड़ु होइ ॥
दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ ॥
भरीऐ मति पापा कै संगि ॥
ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥
पुंनी पापी आखणु नाहि ॥
करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥
आपे बीजि आपे ही खाहु ॥
नानक हुकमी आवहु जाहु ॥२०॥
तीरथु तपु दइआ दतु दानु ॥
जे को पावै तिल का मानु ॥
सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाउ ॥
अंतरगति तीरथि मलि नाउ ॥
सभि गुण तेरे मै नाही कोइ ॥
विणु गुण कीते भगति न होइ ॥
सुअसति आथि बाणी बरमाउ ॥
सति सुहाणु सदा मनि चाउ ॥
कवणु सु वेला वखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु ॥
कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु ॥
वेल न पाईआ पंडती जि होवै लेखु पुराणु ॥
वखतु न पाइओ कादीआ जि लिखनि लेखु कुराणु ॥
थिति वारु ना जोगी जाणै रुति माहु ना कोई ॥
जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई ॥
किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा ॥
नानक आखणि सभु को आखै इक दू इकु सिआणा ॥
वडा साहिबु वडी नाई कीता जा का होवै ॥
नानक जे को आपौ जाणै अगै गइआ न सोहै ॥२१॥
पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥
ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात ॥
सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इकु धातु ॥
लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणासु ॥
नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आपु ॥२२॥
सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ ॥
नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि ॥
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु ॥
कीड़ी तुलि न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि ॥२३॥
अंतु न सिफती कहणि न अंतु ॥
अंतु न करणै देणि न अंतु ॥
अंतु न वेखणि सुणणि न अंतु ॥
अंतु न जापै किआ मनि मंतु ॥
अंतु न जापै कीता आकारु ॥
अंतु न जापै पारावारु ॥
अंत कारणि केते बिललाहि ॥
ता के अंत न पाए जाहि ॥
एहु अंतु न जाणै कोइ ॥
बहुता कहीऐ बहुता होइ ॥
वडा साहिबु ऊचा थाउ ॥
ऊचे उपरि ऊचा नाउ ॥
एवडु ऊचा होवै कोइ ॥
तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ ॥
जेवडु आपि जाणै आपि आपि ॥
नानक नदरी करमी दाति ॥२४॥
बहुता करमु लिखिआ ना जाइ ॥
वडा दाता तिलु न तमाइ ॥
केते मंगहि जोध अपार ॥
केतिआ गणत नही वीचारु ॥
केते खपि तुटहि वेकार ॥
केते लै लै मुकरु पाहि ॥
केते मूरख खाही खाहि ॥
केतिआ दूख भूख सद मार ॥
एहि भि दाति तेरी दातार ॥
बंदि खलासी भाणै होइ ॥
होरु आखि न सकै कोइ ॥
जे को खाइकु आखणि पाइ ॥
ओहु जाणै जेतीआ मुहि खाइ ॥
आपे जाणै आपे देइ ॥
आखहि सि भि केई केइ ॥
जिस नो बखसे सिफति सालाह ॥
नानक पातिसाही पातिसाहु ॥२५॥
अमुल गुण अमुल वापार ॥
अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥
अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥
अमुल भाइ अमुला समाहि ॥
अमुलु धरमु अमुलु दीबाणु ॥
अमुलु तुलु अमुलु परवाणु ॥
अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु ॥
अमुलु करमु अमुलु फुरमाणु ॥
अमुलो अमुलु आखिआ न जाइ ॥
आखि आखि रहे लिव लाइ ॥
आखहि वेद पाठ पुराण ॥
आखहि पड़े करहि वखिआण ॥
आखहि बरमे आखहि इंद ॥
आखहि गोपी तै गोविंद ॥
आखहि ईसर आखहि सिध ॥
आखहि केते कीते बुध ॥
आखहि दानव आखहि देव ॥
आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥
केते आखहि आखणि पाहि ॥
केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥
एते कीते होरि करेहि ॥
ता आखि न सकहि केई केइ ॥
जेवडु भावै तेवडु होइ ॥
नानक जाणै साचा सोइ ॥
जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥
ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥२६॥
सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥
गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥
गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥
गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥
गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥
गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥
सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥२७॥
मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥
खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥
आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२८॥
भुगति गिआनु दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥
आपि नाथु नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥
संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२९॥
एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ॥
इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु ॥
जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु ॥
ओहु वेखै ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३०॥
आसणु लोइ लोइ भंडार ॥
जो किछु पाइआ सु एका वार ॥
करि करि वेखै सिरजणहारु ॥
नानक सचे की साची कार ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३१॥
इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥
लखु लखु गेड़ा आखीअहि एकु नामु जगदीस ॥
एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥
सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥
नानक नदरी पाईऐ कूड़ी कूड़ै ठीस ॥३२॥
आखणि जोरु चुपै नह जोरु ॥
जोरु न मंगणि देणि न जोरु ॥
जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु ॥
जोरु न राजि मालि मनि सोरु ॥
जोरु न सुरती गिआनि वीचारि ॥
जोरु न जुगती छुटै संसारु ॥
जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ ॥
नानक उतमु नीचु न कोइ ॥३३॥
राती रुती थिती वार ॥
पवण पाणी अगनी पाताल ॥
तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥
तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥
तिन के नाम अनेक अनंत ॥
करमी करमी होइ वीचारु ॥
सचा आपि सचा दरबारु ॥
तिथै सोहनि पंच परवाणु ॥
नदरी करमि पवै नीसाणु ॥
कच पकाई ओथै पाइ ॥
नानक गइआ जापै जाइ ॥३४॥
धरम खंड का एहो धरमु ॥
गिआन खंड का आखहु करमु ॥
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥
केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥
केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥३५॥
गिआन खंड महि गिआनु परचंडु ॥
तिथै नाद बिनोद कोड अनंदु ॥
सरम खंड की बाणी रूपु ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥
करम खंड की बाणी जोरु ॥
तिथै होरु न कोई होरु ॥
तिथै जोध महाबल सूर ॥
तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥
तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥
ता के रूप न कथने जाहि ॥
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥
जिन कै रामु वसै मन माहि ॥
तिथै भगत वसहि के लोअ ॥
करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥
सच खंडि वसै निरंकारु ॥
करि करि वेखै नदरि निहाल ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥
जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥
वेखै विगसै करि वीचारु ॥
नानक कथना करड़ा सारु ॥३७॥
जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥
अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥
भउ खला अगनि तप ताउ ॥
भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि ॥
घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥
जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥
नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥
सलोकु ॥
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥
जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥
स्री वाहिगुरू जी की फ़तह ॥
जापु ॥
स्री मुखवाक पातिसाही १० ॥
छपै छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
च्क्र चिहन अरु बरन जाति अरु पाति नहिन जिह ॥
रूप रंग अरु रेख भेख कोऊ कहि न सकति किह ॥
अचल मूरति अनभउ प्रकास अमितोजि कहिजै ॥
कोटि इंद्र इंद्राणि साहु साहाणि गणिजै ॥
त्रिभवण महीप सुर नर असुर नेति नेति बन त्रिण कहत ॥
त्व सरब नाम कथै कवन करम नाम बरणत सुमति ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद ॥ नमसत्वं अकाले ॥
नमसत्वं क्रिपाले ॥ नमसत्वं अरूपे ॥
नमसत्वं अनूपे ॥२॥
नमसतं अभेखे ॥ नमसतं अलेखे ॥
नमसतं अकाए ॥ नमसतं अजाए ॥३॥
नमसतं अगंजे ॥ नमसतं अभंजे ॥
नमसतं अनामे ॥ नमसतं अठामे ॥४॥
नमसतं अकरमं ॥ नमसतं अधरमं ॥
नमसतं अनामं ॥ नमसतं अधामं ॥५॥
नमसतं अजीते ॥ नमसतं अभीते ॥
नमसतं अबाहे ॥ नमसतं अढाहे ॥६॥
नमसतं अनीले ॥ नमसतं अनादे ॥
नमसतं अछेदे ॥ नमसतं अगाधे ॥७॥
नमसतं अगंजे ॥ नमसतं अभंजे ॥
नमसतं उदारे ॥ नमसतं अपारे ॥८॥
नमसतं सु एकै ॥ नमसतं अनेकै ॥
नमसतं अभूते ॥ नमसतं अजूपे ॥९॥
नमसतं न्रिकरमे ॥ नमसतं न्रिभरमे ॥
नमसतं न्रिदेसे ॥ नमसतं न्रिभेसे ॥१०॥
नमसतं न्रिनामे ॥ नमसतं न्रिकामे ॥
नमसतं न्रिधाते ॥ नमसतं न्रिघाते ॥११॥
नमसतं न्रिधूते ॥ नमसतं अभूते ॥
नमसतं अलोके ॥ नमसतं असोके ॥१२॥
नमसतं न्रितापे ॥ नमसतं अथापे ॥
नमसतं त्रिमाने ॥ नमसतं निधाने ॥१३॥
नमसतं अगाहे ॥ नमसतं अबाहे ॥
नमसतं त्रिबरगे ॥ नमसतं असरगे ॥१४॥
नमसतं प्रभोगे ॥ नमसतं सुजोगे ॥
नमसतं अरंगे ॥ नमसतं अभंगे ॥१५॥
नमसतं अगमे ॥ नमसतसतु रमे ॥
नमसतं जलासरे ॥ नमसतं निरासरे ॥१६॥
नमसतं अजाते ॥ नमसतं अपाते ॥
नमसतं अमजबे ॥ नमसतसतु अजबे ॥१७॥
अदेसं अदेसे ॥ नमसतं अभेसे ॥
नमसतं न्रिधामे ॥ नमसतं न्रिबामे ॥१८॥
नमो सरब काले ॥ नमो सरब दिआले ॥
नमो सरब रूपे ॥ नमो सरब भूपे ॥१९॥
नमो सरब खापे ॥ नमो सरब थापे ॥
नमो सरब काले ॥ नमो सरब पाले ॥२०॥
नमसतसतु देवै ॥ नमसतं अभेवै ॥
नमसतं अजनमे ॥ नमसतं सुबनमे ॥२१॥
नमो सरब गउने ॥ नमो सरब भउने ॥
नमो सरब रंगे ॥ नमो सरब भंगे ॥२२॥
नमो काल काले ॥ नमसतसतु दिआले ॥
नमसतं अबरने ॥ नमसतं अमरने ॥२३॥
नमसतं जरारं ॥ नमसतं क्रितारं ॥
नमो सरब धंधे ॥ नमो सत अबंधे ॥२४॥
नमसतं न्रिसाके ॥ नमसतं न्रिबाके ॥
नमसतं रहीमे ॥ नमसतं करीमे ॥२५॥
नमसतं अनंते ॥ नमसतं महंते ॥
नमसतसतु रागे ॥ नमसतं सुहागे ॥२६॥
नमो सरब सोखं ॥ नमो सरब पोखं ॥
नमो सरब करता ॥ नमो सरब हरता ॥२७॥
नमो जोग जोगे ॥ नमो भोग भोगे ॥
नमो सरब दिआले ॥ नमो सरब पाले ॥२८॥
चाचरी छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
अरूप हैं ॥ अनूप हैं ॥
अजू हैं ॥ अभू हैं ॥२९॥
अलेख हैं ॥ अभेख हैं ॥
अनाम हैं ॥ अकाम हैं ॥३०॥
अधे हैं ॥ अभे हैं ॥
अजीत हैं ॥ अभीत हैं ॥३१॥
त्रिमान हैं ॥ निधान हैं ॥
त्रिबरग है ॥ असरग हैं ॥३२॥
अनील हैं ॥ अनादि हैं ॥
अजे हैं ॥ अजादि हैं ॥३३॥
अजनम हैं ॥ अबरन हैं ॥
अभूत हैं ॥ अभरन हैं ॥३४॥
अगंज हैं ॥ अभंज हैं ॥
अझूझ हैं ॥ अझंझ हैं ॥३५॥
अमीक हैं ॥ रफ़ीक हैं ॥
अधंध हैं ॥ अबंध हैं ॥३६॥
न्रिबूझ हैं ॥ असूझ हैं ॥
अकाल हैं ॥ अजाल हैं ॥३७॥
अलाह हैं ॥ अजाह हैं ॥
अनंत हैं ॥ महंत हैं ॥३८॥
अलीक हैं ॥ न्रिस्रीक हैं ॥
न्रिल्मभ हैं ॥ अस्मभ हैं ॥३९॥
अगम हैं ॥ अजम हैं ॥
अभूत हैं ॥ अछूत हैं ॥४०॥
अलोक हैं ॥ असोक हैं ॥
अकरम हैं ॥ अभरम हैं ॥४१॥
अजीत हैं ॥ अभीत हैं ॥
अबाह हैं ॥ अगाह हैं ॥४२॥
अमान हैं ॥ निधान हैं ॥
अनेक हैं ॥ फिरि एक हैं ॥४३॥
भुजंग प्रयात छंद ॥ नमो सरब माने ॥
समसती निधाने ॥ नमो देव देवे ॥
अभेखी अभेवे ॥४४॥
नमो काल काले ॥ नमो सरब पाले ॥
नमो सरब गउणे ॥ नमो सरब भउणे ॥४५॥
अनंगी अनाथे ॥ न्रिसंगी प्रमाथे ॥
नमो भान भाने ॥ नमो मान माने ॥४६॥
नमो चंद्र चंद्रे ॥ नमो भान भाने ॥
नमो गीत गीते ॥ नमो तान ताने ॥४७॥
नमो न्रि्त नि्रते ॥ नमो नाद नादे ॥
नमो पान पाने ॥ नमो बाद बादे ॥४८॥
अनंगी अनामे ॥ समसती सरूपे ॥
प्रभंगी प्रमाथे ॥ समसती बिभूते ॥४९॥
कलंकं बिना नेकलंकी सरूपे ॥
नमो राज राजेस्वरं परम रूपे ॥५०॥
नमो जोग जोगेस्वरं परम सि्धे ॥
नमो राज राजेस्वरं परम ब्रिधे ॥५१॥
नमो ससत्र पाणे ॥ नमो असत्र माणे ॥
नमो परम गिआता ॥ नमो लोक माता ॥५२॥
अभेखी अभरमी अभोगी अभुगते ॥
नमो जोग जोगेस्वरं परम जुगते ॥५३॥
नमो नि्त नाराइणे करूर करमे ॥
नमो प्रेत अप्रेत देवे सुधरमे ॥५४॥
नमो रोग हरता ॥ नमो राग रूपे ॥
नमो साह साहं ॥ नमो भूप भूपे ॥५५॥
नमो दान दाने ॥ नमो मान माने ॥
नमो रोग रोगे ॥ नमसतं सनाने ॥५६॥
नमो मंत्र मंत्रं ॥ नमो जंत्र जंत्रं ॥
नमो इसट इसटे ॥ नमो तंत्र तंत्रं ॥५७॥
सदा स्चदानंद सरबं प्रणासी ॥
अनूपे अरूपे समसतुल निवासी ॥५८॥
सदा सिधिदा बुधिदा ब्रिधि करता ॥
अधो उरध अरधं अघं ओघ हरता ॥५९॥
परं परम परमेस्वरं प्रोछ पालं ॥
सदा सरबदा सिधि दाता दिआलं ॥६०॥
अछेदी अभेदी अनामं अकामं ॥
समसतो पराजी समसतसतु धामं ॥६१॥
तेरा जोरु ॥ चाचरी छंद ॥ जले हैं ॥
थले हैं ॥ अभीत हैं ॥ अभे हैं ॥६२॥
प्रभू हैं ॥ अजू हैं ॥
अदेस हैं ॥ अभेस हैं ॥६३॥
भुजंग प्रयात छंद ॥
अगाधे अबाधे ॥ अनंदी सरूपे ॥
नमो सरब माने ॥ समसती निधाने ॥६४॥
नमसत्वं न्रिनाथे ॥ नमसत्वं प्रमाथे ॥
नमसत्वं अगंजे ॥ नमसत्वं अभंजे ॥६५॥
नमसत्वं अकाले ॥ नमसत्वं अपाले ॥
नमो सरब देसे ॥ नमो सरब भेसे ॥६६॥
नमो राज राजे ॥ नमो साज साजे ॥
नमो साह साहे ॥ नमो माह माहे ॥६७॥
नमो गीत गीते ॥ नमो प्रीति प्रीते ॥
नमो रोख रोखे ॥ नमो सोख सोखे ॥६८॥
नमो सरब रोगे ॥ नमो सरब भोगे ॥
नमो सरब जीतं ॥ नमो सरब भीतं ॥६९॥
नमो सरब गिआनं ॥ नमो परम तानं ॥
नमो सरब मंत्रं ॥ नमो सरब जंत्रं ॥७०॥
नमो सरब द्रि्सं ॥ नमो सरब क्रि्सं ॥
नमो सरब रंगे ॥ त्रिभंगी अनंगे ॥७१॥
नमो जीव जीवं ॥ नमो बीज बीजे ॥
अखि्जे अभि्जे ॥ समसतं प्रसि्जे ॥७२॥
क्रिपालं सरूपे ॥ कुकरमं प्रणासी ॥
सदा सरबदा रिधि सिधं निवासी ॥७३॥
चरपट छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
अम्रित करमे ॥ अमब्रित धरमे ॥
अखिल जोगे ॥ अचल भोगे ॥७४॥
अचल राजे ॥ अटल साजे ॥
अखल धरमं ॥ अलख करमं ॥७५॥
सरबं दाता ॥ सरबं गिआता ॥
सरबं भाने ॥ सरबं माने ॥७६॥
सरबं प्राणं ॥ सरबं त्राणं ॥
सरबं भुगता ॥ सरबं जुगता ॥७७॥
सरबं देवं ॥ सरबं भेवं ॥
सरबं काले ॥ सरबं पाले ॥७८॥
रूआल छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
आदि रूप अनादि मूरति अजोनि पुरख अपार ॥
सरब मान त्रिमान देव अभेव आदि उदार ॥
सरब पालक सरब घालक सरब को पुनि काल ॥
ज्त्र त्त्र बिराजही अवधूत रूप रिसाल ॥७९॥
नाम ठाम न जाति जाकर रूप रंग न रेख ॥
आदि पुरख उदार मूरति अजोनि आदि असेख ॥
देस अउर न भेस जाकर रूप रेख न राग ॥
जत्र तत्र दिसा विसा हुइ फैलिओ अनुराग ॥८०॥
नाम काम बिहीन पेखत धाम हूं नहि जाहि ॥
सरब मान सरब्त्र मान सदैव मानत ताहि ॥
एक मूरति अनेक दरसन कीन रूप अनेक ॥
खेल खेलि अखेल खेलन अंत को फिरि एक ॥८१॥
देव भेव न जानही जिह बेद अउर कतेब ॥
रूप रंग न जाति पाति सु जानई किह जेब ॥
तात मात न जात जाकर जनम मरन बिहीन ॥
च्क्र ब्क्र फिरै चतुर चकि मान ही पुर तीन ॥८२॥
लोक चउदह के बिखै जग जाप ही जिह जापु ॥
आदि देव अनादि मूरति थापिओ सबै जिह थापु ॥
परम रूप पुनीत मूरति पूरन पुरख अपार ॥
सरब बिस्व रचिओ सुय्मभव गड़न भंजनहार ॥८३॥
काल हीन कला संजुगति अकाल पुरख अदेस ॥
धरम धाम सु भरम रहत अभूत अलख अभेस ॥
अंग राग न रंग जा कहि जाति पाति न नाम ॥
गरब गंजन दुसट भंजन मुकति दाइक काम ॥८४॥
आप रूप अमीक अनउसतति एक पुरख अवधूत ॥
गरब गंजन सरब भंजन आदि रूप असूत ॥
अंह हीन अभंग अनातम एक पुरख अपार ॥
सरब लाइक सरब घाइक सरब को प्रतिपार ॥८५॥
सरब गंता सरब हंता सरब ते अनभेख ॥
सरब सासत्र न जानही जिह रूप रंगु अरु रेख ॥
परम बेद पुराण जाकहि नेति भाखत नित ॥
कोटि सिम्रित पुरान सासत्र न आवई वहु चि्त ॥८६॥
मधुभार छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
गुन गन उदार ॥ महिमा अपार ॥
आसन अभंग ॥ उपमा अनंग ॥८७॥
अनभउ प्रकास ॥ निस दिन अनास ॥
आजानु बाहु ॥ साहानु साहु ॥८८॥
राजान राज ॥ भानान भान ॥
देवान देव ॥ उपमा महान ॥८९॥
इंद्रान इंद्र ॥ बालान बाल ॥
रंकान रंक ॥ कालान काल ॥९०॥
अनभूत अंग ॥ आभा अभंग ॥
गति मिति अपार ॥ गुन गन उदार ॥९१॥
मुनि गन प्रनाम ॥ निरभै निकाम ॥
अति दुति प्रचंड ॥ मित गति अखंड ॥९२॥
आलिस्य करम ॥ आद्रिस्य धरम ॥
सरबा भरणाढय ॥ अनडंड बाढय ॥९३॥
चाचरी छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
गुबिंदे ॥ मुकंदे ॥ उदारे ॥ अपारे ॥९४॥
हरीअं ॥ करीअं ॥ न्रिनामे ॥ अकामे ॥९५॥
भुजंग प्रयात छंद ॥ च्त्र च्क्र करता ॥
च्त्र च्क्र हरता ॥ च्त्र च्क्र दाने ॥
च्त्र च्क्र जाने ॥९६॥
च्त्र च्क्र वरती ॥ च्त्र च्क्र भरती ॥
च्त्र च्क्र पाले ॥ च्त्र च्क्र काले ॥९७॥
च्त्र च्क्र पासे ॥ च्त्र च्क्र वासे ॥
च्त्र च्क्र मानयै ॥ च्त्र च्क्र दानयै ॥९८॥
चाचरी छंद ॥
न स्त्रै ॥ न मि्त्रै ॥ न भरमं ॥ न भि्त्रै ॥९९॥
न करमं ॥ न काए ॥ अजनमं ॥ अजाए ॥१००॥
न चि्त्रै ॥ न मि्त्रै ॥ परे हैं ॥ पवि्त्रै ॥१०१॥
प्रिथीसै ॥ अदीसै ॥ अद्रिसै ॥ अक्रिसै ॥१०२॥
भगवती छंद ॥ त्वप्रसादि कथते ॥
कि आछि्ज देसै ॥ कि आभि्ज भेसै ॥
कि आगंज करमै ॥ कि आभंज भरमै ॥१०३॥
कि आभिज लोकै ॥ कि आदित सोकै ॥
कि अवधूत बरनै ॥ कि बिभूत करनै ॥१०४॥
कि राजं प्रभा हैं ॥ कि धरमं धुजा हैं ॥
कि आसोक बरनै ॥ कि सरबा अभरनै ॥१०५॥
कि जगतं क्रिती हैं ॥ कि छत्रं छत्री हैं ॥
कि ब्रहमं सरूपै ॥ कि अनभउ अनूपै ॥१०६॥
कि आदि अदेव हैं ॥ कि आपि अभेव हैं ॥
कि चि्त्रं बिहीनै ॥ कि एकै अधीनै ॥१०७॥
कि रोजी रजाकै ॥ रहीमै रिहाकै ॥
कि पाक बिऐब हैं ॥ कि गैबुल ग़ैब हैं ॥१०८॥
कि अफवुल गुनाह हैं ॥ कि शाहान शाह हैं ॥
कि कारन कुनिंद हैं ॥ कि रोज़ी दिहिंद हैं ॥१०९॥
कि राज़क रहीम हैं ॥ कि करमं करीम हैं ॥
कि सरबं कली हैं ॥ कि सरबं दली हैं ॥११०॥
कि सरब्त्र मानियै ॥ कि सरब्त्र दानियै ॥
कि सरब्त्र गउनै ॥ कि सरब्त्र भउनै ॥१११॥
कि सरब्त्र देसै ॥ कि सरब्त्र भेसै ॥
कि सरब्त्र राजै ॥ कि सरब्त्र साजै ॥११२॥
कि सरब्त्र दीनै ॥ कि सरब्त्र लीनै ॥
कि सरब्त्र जाहो ॥ कि सरब्त्र भाहो ॥११३॥
कि सरब्त्र देसै ॥ कि सरब्त्र भेसै ॥
कि सरब्त्र कालै ॥ कि सरब्त्र पालै ॥११४॥
कि सरब्त्र हंता ॥ कि सरब्त्र गंता ॥
कि सरब्त्र भेखी ॥ कि सरब्त्र पेखी ॥११५॥
कि सरब्त्र काजै ॥ कि सरब्त्र राजै ॥
कि सरब्त्र सोखै ॥ कि सरब्त्र पोखै ॥११६॥
कि सरब्त्र त्राणै ॥ कि सरब्त्र प्राणै ॥
कि सरब्त्र देसै ॥ कि सरब्त्र भेसै ॥११७॥
कि सरब्त्र मानियैं ॥ सदैवं प्रधानियैं ॥
कि सरब्त्र जापियै ॥ कि सरब्त्र थापियै ॥११८॥
कि सरब्त्र भानै ॥ कि सरब्त्र मानै ॥
कि सरब्त्र इंद्रै ॥ कि सरब्त्र चंद्रै ॥११९॥
कि सरबं कलीमै ॥ कि परमं फ़हीमै ॥
कि आकिल अलामै ॥ कि साहिब कलामै ॥१२०॥
कि हुसनल वजू हैं ॥ तमामुल रुजू हैं ॥
हमेसुल सलामै ॥ सलीखत मुदामैं ॥१२१॥
ग़नीमुल शिकसतै ॥ गरीबुल परसतै ॥
बिलंदुल मकानै ॥ ज़मीनुल ज़मानै ॥१२२॥
तमीज़ुल तमामैं ॥ रुजूअल निधानैं ॥
हरीफ़ुल अजीमैं ॥ रज़ाइक यकीनै ॥१२३॥
अनेकुल तरंग हैं ॥ अभेद हैं अभंग हैं ॥
अज़ीज़ुल निवाज़ हैं ॥ ग़नीमुल खिराज हैं ॥१२४॥
निरुकत सरूप हैं ॥ त्रिमुकति बिभूत हैं ॥
प्रभुगति प्रभा हैं ॥ सुजुगति सुधा हैं ॥१२५॥
सदैवं सरूप हैं ॥ अभेदी अनूप हैं ॥
समसतो पराज हैं ॥ सदा सरब साज हैं ॥१२६॥
समसतुल सलाम हैं ॥ सदैवल अकाम हैं ॥
न्रिबाध सरूप हैं ॥ अगाध हैं अनूप हैं ॥१२७॥
ओअं आदि रूपे ॥ अनादि सरूपै ॥
अनंगी अनामे ॥ त्रिभंगी त्रिकामे ॥१२८॥
त्रिबरगं त्रिबाधे ॥ अगंजे अगाधे ॥
सुभं सरब भागे ॥ सु सरबा अनुरागे ॥१२९॥
त्रिभुगत सरूप हैं ॥ अछि्ज हैं अछूत हैं ॥
कि नरकं प्रणास हैं ॥ प्रिथीउल प्रवास हैं ॥१३०॥
निरुकति प्रभा हैं ॥ सदैवं सदा हैं ॥
बिभुगति सरूप है ॥ प्रजुगति अनूप हैं ॥१३१॥
निरुकति सदा हैं ॥ बिभुगति प्रभा हैं ॥
अनउकति सरूप हैं ॥ प्रजुगति अनूप हैं ॥१३२॥
चाचरी छंद ॥ अभंग हैं ॥ अनंग हैं ॥
अभेख हैं ॥ अलेख हैं ॥१३३॥
अभरम हैं ॥ अकरम हैं ॥
अनादि हैं ॥ जुगादि हैं ॥१३४॥
अजै हैं ॥ अबै हैं ॥
अभूत हैं ॥ अधूत हैं ॥१३५॥
अनास हैं ॥ उदास हैं ॥
अधंध हैं ॥ अबंध हैं ॥१३६॥
अभगत हैं ॥ बिरकत हैं ॥
अनास हैं ॥ प्रकास हैं ॥१३७॥
निचिंत हैं ॥ सुनिंत हैं ॥
अलि्ख हैं ॥ अदि्ख हैं ॥१३८॥
अलेख हैं ॥ अभेख हैं ॥
अढाह हैं ॥ अगाह हैं ॥१३९॥
अस्मभ हैं ॥ अग्मभ हैं ॥
अनील हैं ॥ अनादि हैं ॥१४०॥
अनित हैं ॥ सुनित हैं ॥
अजात हैं ॥ अजादि हैं ॥१४१॥
चरपट छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
सरबं हंता ॥ सरब गंता ॥
सरबं खिआता ॥ सरबं गिआता ॥१४२॥
सरबं हरता ॥ सरबं करता ॥
सरबं प्राणं ॥ सरबं त्राणं ॥१४३॥
सरबं करमं ॥ सरबं धरमं ॥
सरबं जुगता ॥ सरबं मुकता ॥१४४॥
रसावल छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
नमो नरक नासे ॥ सदैवं प्रकासे ॥
अनंगं सरूपे ॥ अभंगं बिभूते ॥१४५॥
प्रमाथं प्रमाथे ॥ सदा सरब साथे ॥
अगाध सरूपे ॥ न्रिबाध बिभूते ॥१४६॥
अनंगी अनामे ॥
त्रिभंगी त्रिकामे ॥
न्रिभंगी सरूपे ॥
सरबंगी अनूपे ॥१४७॥
न पोत्रै न पुत्रै ॥ न सत्रै न मित्रै ॥
न तातै न मातै ॥ न जातै न पातै ॥१४८॥
न्रिसाकं सरीक हैं ॥ अमितो अमीक हैं ॥
सदैवं प्रभा हैं ॥ अजै हैं अजा हैं ॥१४९॥
भगवती छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
कि ज़ाहिर ज़हूर हैं ॥ कि हाज़िर हज़ूर हैं ॥
हमेसुल सलाम हैं ॥ समसतुल कलाम हैं ॥१५०॥
कि साहिब दिमाग हैं ॥ कि हुसनल चराग हैं ॥
कि कामल करीम हैं ॥ कि राज़क रहीम हैं ॥१५१॥
कि रोज़ी दिहिंद हैं ॥ कि राज़क रहिंद हैं ॥
करीमुल कमाल हैं ॥ कि हुसनल जमाल हैं ॥१५२॥
ग़नीमुल ख़िराज हैं ॥ ग़रीबुल निवाज़ हैं ॥
हरफ़िुल शिकंन हैं ॥ हिरासुल फिकंन हैं ॥१५३॥
कलंकं प्रणास हैं ॥ समसतुल निवास हैं ॥
अगंजुल गनीम हैं ॥ रजाइक रहीम हैं ॥१५४॥
समसतुल जुबां हैं ॥ कि साहिब किरां हैं ॥
कि नरकं प्रणास हैं ॥ बहिसतुल निवास हैं ॥१५५॥
कि सरबुल गवंन हैं ॥ हमेसुल रवंन हैं ॥
तमामुल तमीज हैं ॥ समसतुल अजीज हैं ॥१५६॥
परं परम ईस हैं ॥
समसतुल अदीस हैं ॥
अदेसुल अलेख हैं ॥
हमेसुल अभेख हैं ॥१५७॥
ज़मीनुल ज़मां हैं ॥ अमीकुल इमां हैं ॥
करीमुल कमाल हैं ॥ कि जुरअति जमाल हैं ॥१्हू५८॥
कि अचलं प्रकास हैं ॥ कि अमितो सुबास हैं ॥
कि अजब सरूप हैं ॥ कि अमितो बिभुूत हैं ॥१५९॥
कि अमितो पसा हैं ॥ कि आतम प्रभा हैं ॥
कि अचलं अनंग हैं ॥ कि अमितो अभंग हैं ॥१६०॥
मधुभार छंद ॥ त्वप्रसादि ॥ मुनि मनि प्रनाम ॥ गुनि गन मुदाम ॥
अरि बर अगंज ॥ हरि नर प्रभंज ॥१६१॥
अनगन प्रनाम ॥ मुनि मनि सलाम ॥
हरि नर अखंड ॥ बर नर अमंड ॥१६२॥
अनभव अनास ॥ मुनि मनि प्रकास ॥
गुनि गन प्रनाम ॥ जल थल मुदाम ॥१६३॥
अनिछ्ज अंग ॥ आसन अभंग ॥
उपमा अपार ॥ गति मिति उदार ॥१६४॥
जल थल अमंड ॥ दिस विस अभंड ॥
जल थल महंत ॥ दिस विस बिअंत ॥१६५॥
अनभव अनास ॥ ध्रित धर धुरास ॥
आजान बाहु ॥ एकै सदाहु ॥१६६॥
ओअंकार आदि ॥ कथनी अनादि ॥
खल खंड खिआल ॥ गुर बर अकाल ॥१६७॥
घर घरि प्रनाम ॥ चित चरन नाम ॥
अनिछ्ज गात ॥ आजिज न बात ॥१६८॥
अनझंझ गात ॥ अनरंज बात ॥
अनटुट भंडार ॥ अनठट अपार ॥१६९॥
आडीठ धरम ॥ अति ढीठ करम ॥
अणब्रण अनंत ॥ दाता महंत ॥१७०॥
हरि बोल मना छंद ॥ त्वप्रसादि ॥
करुणालय हैं ॥ अरि घालय हैं ॥
खल खंडन हैं ॥ महि मंडन हैं ॥१७१॥
जगतेस्वर हैं ॥ परमेस्वर हैं ॥
कलि कारण हैं ॥ सरब उबारण हैं ॥१७२॥
ध्रित के ध्रण हैं ॥ जग के क्रण हैं ॥
मन मानिय हैं ॥ जग जानिय हैं ॥१७३॥
सरबं भर हैं ॥ सरबं कर हैं ॥
सरब पासिय हैं ॥ सरब नासिय हैं ॥१७४॥
करुणाकर हैं ॥ बिस्व्मभर हैं ॥
सरबेस्वर हैं ॥ जगतेस्वर हैं ॥१७५॥
ब्रहमंडस हैं ॥ खल खंडस हैं ॥
पर ते पर हैं ॥ करुणाकर हैं ॥१७६॥
अजपा जप हैं ॥ अथपा थप हैं ॥
अक्रिताक्रित हैं ॥ अम्रिताम्रित हैं ॥१७७॥
अम्रिताम्रित हैं ॥ करुणाक्रित हैं ॥
अक्रिताक्रत हैं ॥ धरणीध्रित हैं ॥१७८॥
अम्रितेस्वर हैं ॥ परमेस्वर हैं ॥
अक्रिताक्रित हैं ॥ अम्रिताम्रित हैं ॥१७९॥
अजबाक्रित हैं ॥ अम्रिताअम्रित हैं ॥
नर नाइक हैं ॥ खल घाइक हैं ॥१८०॥
बिस्व्मभर हैं ॥ करुणालय हैं ॥
न्रिप नाइक हैं ॥ सरब पाइक हैं ॥१८१॥
भव भंजन हैं ॥ अरि गंजन हैं ॥
रिपु तापन हैं ॥ जपु जापन हैं ॥१८२॥
अकलंक्रित हैं ॥ सरबाक्रित हैं ॥
करता कर हैं ॥ हरता हरि हैं ॥१८३॥
परमातम हैं ॥ सरबातम हैं ॥
आतम बस हैं ॥ जस के जस हैं ॥१८४॥
भुजंग प्रयात छंद ॥
नमो सूरज सुरजे नमो चंद्र चंद्रे ॥
नमो राज राजे नमो इंद्र इंद्रे ॥
नमो अंधकारे नमो तेज तेजे ॥
नमो ब्रिंद ब्रिंदे नमो बीज बीजे ॥१८५॥
नमो राजसं तामसं सांति रूपे ॥
नमो परम त्तं अततं सरूपे ॥
नमो जोग जोगे नमो गिआन गिआने ॥
नमो मंत्र मंत्रे नमो धिआन धिआने ॥१८६॥
नमो जुध जुधे नमो गिआन गिआने ॥
नमो भोज भोजे नमो पान पाने ॥
नमो कलह करता नमो सांति रूपे ॥
नमो इंद्र इंद्रे अनादं बिभूते ॥१८७॥
कलंकार रूपे अलंकार अलंके ॥
नमो आस आसे नमो बांक बंके ॥
अभंगी सरूपे अनंगी अनामे ॥
त्रिभंगी त्रिकाले अनंगी अकामे ॥१८८॥
एक अछरी छंद ॥
अजै ॥ अलै ॥ अभै ॥ अबै ॥१८९॥
अभू ॥ अजू ॥ अनास ॥ अकास ॥१९०॥
अगंज ॥ अभंज ॥ अलख ॥ अभख ॥१९१॥
अकाल ॥ दिआल ॥ अलेख ॥ अभेख ॥१९२॥
अनाम ॥ अकाम ॥ अगाह ॥ अढाह ॥१९३॥
अनाथे ॥ प्रमाथे ॥ अजोनी ॥ अमोनी ॥१९४॥
न रागे ॥ न रंगे ॥ न रूपे ॥ न रेखे ॥१९५॥
अकरमं ॥ अभरमं ॥ अगंजे ॥ अलेखे ॥१९६॥
भुजंग प्रयात छंद ॥
नमसतुल प्रणामे समसतुल प्रणासे ॥
अगंजुल अनामे समसतुल निवासे ॥
न्रिकामं बिभूते ॥ समसतुल सरूपे ॥
कुकरमं प्रणासी सुधरमं बिभूते ॥१९७॥
सदा स्चिदानंद स्त्रं प्रणासी ॥
करीमुल कुनिंदा समसतुल निवासी ॥
अजाइब बिभूते गजाइब गनीमे ॥
हरीअं करीअं करीमुल रहीमे ॥१९८॥
च्त्र च्क्र वरती च्त्र च्क्र भुगते ॥
सुय्मभव सुभं सरबदा सरब जुगते ॥
दुकालं प्रणासी दिआलं सरूपे ॥
सदा अंग संगे अभंगं बिभूते ॥१९९॥
स्रावग सु्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥
सूर सुरारदन सु्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥
सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥
स्री भगवान की भाइ क्रिपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥२१॥
माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥
कोट तुरंग कुरंग से कूदत पउन के गउन कउ जात निवारे ॥
भारी भुजान के भूप भली बिधि निआवत सीस न जात बिचारे ॥
एते भए तु कहा भए भूपति अंत कौ नांगे ही पांइ पधारे ॥२॥२२॥
जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥
गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥
भूत भवि्ख भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥
स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥
तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥
बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥
पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजारक देखै ॥
स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥
सु्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥
भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥
तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥
स्री पति स्री भगवान क्रिपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥
बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछ्या ॥
तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मल्या ॥
गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लव्या ॥
साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिव्या ॥६॥२६॥
दानव देव फनिंद निसाचर भूत भवि्ख भवान जपैंगे ॥
जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥
पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥
साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥२७॥
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥
कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥
ब्रहम महेसर बिसन सचीपित अंत फसे जम फासि परैंगे ॥
जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥
कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥
बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥
काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥
कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥
कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥
ੴ स्री वाहगुरू जी की फतह ॥
पातिसाही १० ॥
कबियो बाच बेनती ॥
चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रछा ॥
पूरन होइ चि्त की इछा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥
हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सि्खय सभै करतारा ॥२॥
मो रछा निजु कर दै करियै ॥
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥
तोरि भजन की रहै पियासा ॥३॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक सि्खय हमारे तारियहि ॥
चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥४॥
आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल का त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे प्छा ॥
स्री असिधुज जू करियहु ्रछा ॥५॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीनबंधु दुशटन के हंता ॥
तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥६॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥
काल पाइ शिवजू अवतरा ॥
काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥
सकल काल का कीया तमाशा ॥७॥
जवन काल जोगी शिव कीयो ॥
बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमशकार है ताहि हमारा ॥८॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत ज्छन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥
नमशकार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥
श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर असथूला ॥
सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥११॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानै ॥
घट घट के पट पट की जानै ॥१२॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥
जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥
आपु आपुनी बूझि उचारै ॥
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अरु आलम ॥१४॥
निरंकार न्रिबिकार न्रिल्मभ ॥
आदि अनील अनादि अस्मभ ॥
ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥
जाको भेव न पावत बेदा ॥१५॥
ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥
महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥१८॥
कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥
कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥
सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥
आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥१९॥
अब ्रछा मेरी तुम करो ॥
सि्खय उबारि असि्खय स्घरो ॥
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥
जे असिधुज तव शरनी परे ॥
तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥
जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
्रछा होइ ताहि सभ काला ॥
दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥२२॥
क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रि्धि सि्धि घर मों सभ होई ॥
दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥
एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुशट दोख ते रहा ॥२४॥
खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥
रामकली महला ३ अनंदु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥
साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥
करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥
साची लिवै बिनु देह निमाणी ॥
देह निमाणी लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥
तुधु बाझु समरथ कोइ नाही क्रिपा करि बनवारीआ ॥
एस नउ होरु थाउ नाही सबदि लागि सवारीआ ॥
कहै नानकु लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥६॥
आनंदु आनंदु सभु को कहै आनंदु गुरू ते जाणिआ ॥
जाणिआ आनंदु सदा गुर ते क्रिपा करे पिआरिआ ॥
करि किरपा किलविख कटे गिआन अंजनु सारिआ ॥
अंदरहु जिन का मोहु तुटा तिन का सबदु सचै सवारिआ ॥
कहै नानकु एहु अनंदु है आनंदु गुर ते जाणिआ ॥७॥
बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै ॥
पावै त सो जनु देहि जिस नो होरि किआ करहि वेचारिआ ॥
इकि भरमि भूले फिरहि दह दिसि इकि नामि लागि सवारिआ ॥
गुर परसादी मनु भइआ निरमलु जिना भाणा भावए ॥
कहै नानकु जिसु देहि पिआरे सोई जनु पावए ॥८॥
आवहु संत पिआरिहो अकथ की करह कहाणी ॥
करह कहाणी अकथ केरी कितु दुआरै पाईऐ ॥
तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥
हुकमु मंनिहु गुरू केरा गावहु सची बाणी ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु कथिहु अकथ कहाणी ॥९॥
ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥
चतुराई न पाइआ किनै तू सुणि मंन मेरिआ ॥
एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥
माइआ त मोहणी तिनै कीती जिनि ठगउली पाईआ ॥
कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥
कहै नानकु मन चंचल चतुराई किनै न पाइआ ॥१०॥
ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले ॥
एहु कुट्मबु तू जि देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥
साथि तेरै चलै नाही तिसु नालि किउ चितु लाईऐ ॥
ऐसा कमु मूले न कीचै जितु अंति पछोताईऐ ॥
सतिगुरू का उपदेसु सुणि तू होवै तेरै नाले ॥
कहै नानकु मन पिआरे तू सदा सचु समाले ॥११॥
अगम अगोचरा तेरा अंतु न पाइआ ॥
अंतो न पाइआ किनै तेरा आपणा आपु तू जाणहे ॥
जीअ जंत सभि खेलु तेरा किआ को आखि वखाणए ॥
आखहि त वेखहि सभु तूहै जिनि जगतु उपाइआ ॥
कहै नानकु तू सदा अगमु है तेरा अंतु न पाइआ ॥१२॥
सुरि नर मुनि जन अम्रितु खोजदे सु अम्रितु गुर ते पाइआ ॥
पाइआ अम्रितु गुरि क्रिपा कीनी सचा मनि वसाइआ ॥
जीअ जंत सभि तुधु उपाए इकि वेखि परसणि आइआ ॥
लबु लोभु अहंकारु चूका सतिगुरू भला भाइआ ॥
कहै नानकु जिस नो आपि तुठा तिनि अम्रितु गुर ते पाइआ ॥१३॥
भगता की चाल निराली ॥
चाला निराली भगताह केरी बिखम मारगि चलणा ॥
लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाही बोलणा ॥
खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ॥
गुर परसादी जिनी आपु तजिआ हरि वासना समाणी ॥
कहै नानकु चाल भगता जुगहु जुगु निराली ॥१४॥
जिउ तू चलाइहि तिव चलह सुआमी होरु किआ जाणा गुण तेरे ॥
जिव तू चलाइहि तिवै चलह जिना मारगि पावहे ॥
करि किरपा जिन नामि लाइहि सि हरि हरि सदा धिआवहे ॥
जिस नो कथा सुणाइहि आपणी सि गुरदुआरै सुखु पावहे ॥
कहै नानकु सचे साहिब जिउ भावै तिवै चलावहे ॥१५॥
एहु सोहिला सबदु सुहावा ॥
सबदो सुहावा सदा सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥
एहु तिन कै मंनि वसिआ जिन धुरहु लिखिआ आइआ ॥
इकि फिरहि घनेरे करहि गला गली किनै न पाइआ ॥
कहै नानकु सबदु सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥१६॥
पवितु होए से जना जिनी हरि धिआइआ ॥
हरि धिआइआ पवितु होए गुरमुखि जिनी धिआइआ ॥
पवितु माता पिता कुट्मब सहित सिउ पवितु संगति सबाईआ ॥
कहदे पवितु सुणदे पवितु से पवितु जिनी मंनि वसाइआ ॥
कहै नानकु से पवितु जिनी गुरमुखि हरि हरि धिआइआ ॥१७॥
करमी सहजु न ऊपजै विणु सहजै सहसा न जाइ ॥
नह जाइ सहसा कितै संजमि रहे करम कमाए ॥
सहसै जीउ मलीणु है कितु संजमि धोता जाए ॥
मंनु धोवहु सबदि लागहु हरि सिउ रहहु चितु लाइ ॥
कहै नानकु गुर परसादी सहजु उपजै इहु सहसा इव जाइ ॥१८॥
जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥
एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ ॥
वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ ॥
कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥१९॥
जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतिगुर ते करणी कमाणी ॥
कूड़ की सोइ पहुचै नाही मनसा सचि समाणी ॥
जनमु रतनु जिनी खटिआ भले से वणजारे ॥
कहै नानकु जिन मंनु निरमलु सदा रहहि गुर नाले ॥२०॥
जे को सिखु गुरू सेती सनमुखु होवै ॥
होवै त सनमुखु सिखु कोई जीअहु रहै गुर नाले ॥
गुर के चरन हिरदै धिआए अंतर आतमै समाले ॥
आपु छडि सदा रहै परणै गुर बिनु अवरु न जाणै कोए ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सो सिखु सनमुखु होए ॥२१॥
जे को गुर ते वेमुखु होवै बिनु सतिगुर मुकति न पावै ॥
पावै मुकति न होर थै कोई पुछहु बिबेकीआ जाए ॥
अनेक जूनी भरमि आवै विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥
फिरि मुकति पाए लागि चरणी सतिगुरू सबदु सुणाए ॥
कहै नानकु वीचारि देखहु विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥२२॥
आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो गावहु सची बाणी ॥
बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिरि बाणी ॥
जिन कउ नदरि करमु होवै हिरदै तिना समाणी ॥
पीवहु अम्रितु सदा रहहु हरि रंगि जपिहु सारिगपाणी ॥
कहै नानकु सदा गावहु एह सची बाणी ॥२३॥
सतिगुरू बिना होर कची है बाणी ॥
बाणी त कची सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥
कहदे कचे सुणदे कचे कची आखि वखाणी ॥
हरि हरि नित करहि रसना कहिआ कछू न जाणी ॥
चितु जिन का हिरि लइआ माइआ बोलनि पए रवाणी ॥
कहै नानकु सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥२४॥
गुर का सबदु रतंनु है हीरे जितु जड़ाउ ॥
सबदु रतनु जितु मंनु लागा एहु होआ समाउ ॥
सबद सेती मनु मिलिआ सचै लाइआ भाउ ॥
आपे हीरा रतनु आपे जिस नो देइ बुझाइ ॥
कहै नानकु सबदु रतनु है हीरा जितु जड़ाउ ॥२५॥
सिव सकति आपि उपाइ कै करता आपे हुकमु वरताए ॥
हुकमु वरताए आपि वेखै गुरमुखि किसै बुझाए ॥
तोड़े बंधन होवै मुकतु सबदु मंनि वसाए ॥
गुरमुखि जिस नो आपि करे सु होवै एकस सिउ लिव लाए ॥
कहै नानकु आपि करता आपे हुकमु बुझाए ॥२६॥
सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥
ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी ॥
तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी ॥
गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अम्रित बाणी ॥
कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥
माता के उदर महि प्रतिपाल करे सो किउ मनहु विसारीऐ ॥
मनहु किउ विसारीऐ एवडु दाता जि अगनि महि आहारु पहुचावए ॥
ओस नो किहु पोहि न सकी जिस नउ आपणी लिव लावए ॥
आपणी लिव आपे लाए गुरमुखि सदा समालीऐ ॥
कहै नानकु एवडु दाता सो किउ मनहु विसारीऐ ॥२८॥
जैसी अगनि उदर महि तैसी बाहरि माइआ ॥
माइआ अगनि सभ इको जेही करतै खेलु रचाइआ ॥
जा तिसु भाणा ता जमिआ परवारि भला भाइआ ॥
लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ ॥
एह माइआ जितु हरि विसरै मोहु उपजै भाउ दूजा लाइआ ॥
कहै नानकु गुर परसादी जिना लिव लागी तिनी विचे माइआ पाइआ ॥२९॥
हरि आपि अमुलकु है मुलि न पाइआ जाइ ॥
मुलि न पाइआ जाइ किसै विटहु रहे लोक विललाइ ॥
ऐसा सतिगुरु जे मिलै तिस नो सिरु सउपीऐ विचहु आपु जाइ ॥
जिस दा जीउ तिसु मिलि रहै हरि वसै मनि आइ ॥
हरि आपि अमुलकु है भाग तिना के नानका जिन हरि पलै पाइ ॥३०॥
हरि रासि मेरी मनु वणजारा ॥
हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ॥
हरि हरि नित जपिहु जीअहु लाहा खटिहु दिहाड़ी ॥
एहु धनु तिना मिलिआ जिन हरि आपे भाणा ॥
कहै नानकु हरि रासि मेरी मनु होआ वणजारा ॥३१॥
ए रसना तू अन रसि राचि रही तेरी पिआस न जाइ ॥
पिआस न जाइ होरतु कितै जिचरु हरि रसु पलै न पाइ ॥
हरि रसु पाइ पलै पीऐ हरि रसु बहुड़ि न त्रिसना लागै आइ ॥
एहु हरि रसु करमी पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ ॥
कहै नानकु होरि अन रस सभि वीसरे जा हरि वसै मनि आइ ॥३२॥
ए सरीरा मेरिआ हरि तुम महि जोति रखी ता तू जग महि आइआ ॥
हरि जोति रखी तुधु विचि ता तू जग महि आइआ ॥
हरि आपे माता आपे पिता जिनि जीउ उपाइ जगतु दिखाइआ ॥
गुर परसादी बुझिआ ता चलतु होआ चलतु नदरी आइआ ॥
कहै नानकु स्रिसटि का मूलु रचिआ जोति राखी ता तू जग महि आइआ ॥३३॥
मनि चाउ भइआ प्रभ आगमु सुणिआ ॥
हरि मंगलु गाउ सखी ग्रिहु मंदरु बणिआ ॥
हरि गाउ मंगलु नित सखीए सोगु दूखु न विआपए ॥
गुर चरन लागे दिन सभागे आपणा पिरु जापए ॥
अनहत बाणी गुर सबदि जाणी हरि नामु हरि रसु भोगो ॥
कहै नानकु प्रभु आपि मिलिआ करण कारण जोगो ॥३४॥
ए सरीरा मेरिआ इसु जग महि आइ कै किआ तुधु करम कमाइआ ॥
कि करम कमाइआ तुधु सरीरा जा तू जग महि आइआ ॥
जिनि हरि तेरा रचनु रचिआ सो हरि मनि न वसाइआ ॥
गुर परसादी हरि मंनि वसिआ पूरबि लिखिआ पाइआ ॥
कहै नानकु एहु सरीरु परवाणु होआ जिनि सतिगुर सिउ चितु लाइआ ॥३५॥
ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई ॥
हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ ॥
एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ ॥
गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई ॥
कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई ॥३६॥
ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥
साचै सुनणै नो पठाए सरीरि लाए सुणहु सति बाणी ॥
जितु सुणी मनु तनु हरिआ होआ रसना रसि समाणी ॥
सचु अलख विडाणी ता की गति कही न जाए ॥
कहै नानकु अम्रित नामु सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥३७॥
हरि जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥
वजाइआ वाजा पउण नउ दुआरे परगटु कीए दसवा गुपतु रखाइआ ॥
गुरदुआरै लाइ भावनी इकना दसवा दुआरु दिखाइआ ॥
तह अनेक रूप नाउ नव निधि तिस दा अंतु न जाई पाइआ ॥
कहै नानकु हरि पिआरै जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥३८॥
एहु साचा सोहिला साचै घरि गावहु ॥
गावहु त सोहिला घरि साचै जिथै सदा सचु धिआवहे ॥
सचो धिआवहि जा तुधु भावहि गुरमुखि जिना बुझावहे ॥
इहु सचु सभना का खसमु है जिसु बखसे सो जनु पावहे ॥
कहै नानकु सचु सोहिला सचै घरि गावहे ॥३९॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥